‘संस्कृत अथर्ववेद संहिता हिंदी अर्थ सहित’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Atharva Veda’ using the download button.
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यहा पर आपको भिन्न लेखको द्वारा लिखा हुआ या अनुवाद किया हुआ अथर्ववेद की संस्कृत श्लोक के साथ हिंदी अनुवाद में मिलेगी |
ऋग्वेद ज्ञानकाण्ड है। यजुर्वेद कर्मकाण्ड है। सामवेद उपासनीकाण्ड है और अथर्ववेद विज्ञानकाण्ड है। भाष्यकार के शब्दों में ऋग्वेद मस्तिक का वेद है, यजुर्वेद हाथों का वेद है।
सामवेद हृदय का वेद है और अथर्ववेद उदर-पेट का वेद है। उदर विकारों से ही नाना प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं। इस वेद में नाना प्रकार की ओषधियों का वर्णन करके शरीर को नीरोग, स्वस्थ और शान्त रखने के उपायों का वर्णन है।
राष्ट्र में उपद्रव और अशान्ति होने पर राष्ट्र की सुरक्षा के लिए नाना प्रकार के भयंकरतम अस्त्र और शस्त्रों का वर्णन भी इस वेद में है। इसप्रकार यह युद्ध और शान्ति का वेद है। यही इस वेद का प्रमुख विषय है।
अर्थवेद में बीस काण्ड, ७३१ सूक्त और ५९७७ मन्त्र हैं। सबसे छोटा सूक्त एक मन्त्र का है। एक-एक, दो-दो और तीन-तीन मन्त्रों के अनेक सूक्त हैं।
सबसे बड़ा सूक्त ८९ मन्त्रों का है, इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। इस वेद के अनेक सूक्तों में ब्रह्म परमेश्वर का हृदयहारी वर्णन है, जिसे पढ़ते-पढ़ते पाठक भावविभोर हो उठता है।
वह अध्यात्म के सरोवर में डुबकियाँ लगाने लगता है। ऐसे कुछ सूक्त हैं-२ १; ४ । २; ४ । १६ आदि ।
गृहस्थ के सौहार्द का जो मनोहारी वर्णन ३ । ३० में किया है, उसकी छटा देखते ही बनती है। इसी प्रकार का एक सूक्त ७ ६२ भी है।
इन सूक्तों में वर्णित शिक्षाओं पर आचरण किया जाए तो घर निश्चय ही स्वर्ग बन जाए।
चौदहवाँ काण्ड तो सारा ही दाम्पत्य सूक्त है, जिसमें पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों और गृहस्थ की मान-मर्यादाओं का उत्तम विवेचन है।
बारहवें काण्ड को प्रथम सूक्त संसार का प्रथम राष्ट्रगीत है। इसमें एक आदर्श राष्ट्र और उसकी रक्षा के उपायों को सर्वाङ्गीण चित्रण हुआ है।
वेद ने सारे संसार को एक सार्वभौम राज्य माना है और धूमिमाता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की प्रेरणा दी है।
पाश्चात्यों के अनुसार अथर्ववेद जादू-टोने का वेद है। इसमें शत्रुओं के मारण, मोहन और उच्चाटन का वर्णेने है। इसमें कृत्या द्वारा शत्रु हनन के प्रयोग हैं। ये सारी धारणाएँ भ्रान्त हैं।
इस भाष्य को पढ़ने से इस भ्रान्त धारणा का उन्मूलन हो जाएगा।
ऋग्वेद ‘विज्ञानवेद’ होता हुआ मस्तिष्क का वेद है तो यजुर्वेद ‘कर्मवेद होता हुआ हाथों का वेद कहा जाता है।
‘उपासनावेद’ रूप सामवेद का सम्बन्ध हृदय से हैं और अथर्ववेद का सम्बन्ध इससे निचले भाग उदर से ही होना चाहिए।
वस्तुतः उदर विकार से ही सब रोग व युद्ध हुआ करते हैं और इस अथर्व में हम आयुर्वेद (Science of Medicine) तथा युद्धवेद (Science of War) को विस्तार से देखते हैं।
इन विकारों से ऊपर उठाकर यह वेद हुमें ब्रह्म-प्राप्ति के योग्य बनाता है, अतः यह ‘ब्रह्मवेद’ कहाता है। इन विकारों से बचने का सङ्केत यह प्रथम मन्त्र में ही ‘वाचस्पति’ शब्द से कर रहा है।
यदि हम वाक् व जिह्वा के पति बन जाएँ तो न तो लड़ाइयाँ ही हों और न ही रोग।
सब लड़ाइयाँ बोलने के असंयम के कारण होती हैं और सब रोग खाने में असंयम के कारण। यदि दो संयम परिपक्व हो जाएँ तो कोई गड़बड़ ही न हो-‘Eating little and speaking little can never do harm.’ इसके विपरीत ‘अतिभुक्तिरतीवोक्तिः सद्यः प्राणापहारिणी’।
इस अथर्व का आरम्भ आचार्य द्वारा शिष्य को उपदेश करने से होता है। यह आचार्य ‘अथर्वा’ है (न थर्व) डाँवाडोल वृत्तिवाला नहीं। यह स्थितप्रज्ञ ‘अथर्वा‘ ही इन मन्त्रों का ऋषि है। यह आचार्य विद्यार्थी को पूर्ण स्वस्थ जीवन बिताने के लिए शिक्षित करता है-
प्रथमं सूक्तम्
ये त्रि॑ष॒प्ताः प॑रि॒यन्ति॒ विश्वा रूपाणि बिभ॑तः ।
वा॒चस्पति॒र्बल तैनां॑ त॒न्वो अ॒द्य द॑धातु मे ॥ १ ॥
भावार्थ-शर मेघ-जल से उत्पन्न होने के कारण शतशः शक्ति-सम्पन्न अतः यह शरीर को निर्दोष बनाता है।
वि॒द्मा श॒रस्य॑ पि॒तर॑ मि॒त्रं श॒तवृ॑ष्ण्यम् ।
तेना॑ ते त॒न्वे॒ शं क॑रं पृथि॒व्या॑ ते॑ नि॒षेच॑न॑ ब॒हिष्टें अस्तु॒ बालितं ॥ २ ॥
भावार्थ – दिन में शर सूर्य किरणों से अपने में प्राण शक्ति लेता है और इसप्रकार हमें शतवर्षपर्यन्त शक्तिशाली बनाता है।
वि॒द्मा श॒रस्य॑ पि॒तरो॑ वरुणं शतवृष्ण्यम् ।
तेन ते त॒न्वे॒ शं करें (पृथि॒व्यां ते॑ नि॒षेच॑न॑ ब॒हिष्टे’ अस्तु॒ बालिति॑ ॥ ३ ॥
भावार्थ – चन्द्रमा से रस प्राप्त करके शतशः शक्तियों से युक्त यह शर हमारे शरीर को निर्दोष व स्वस्थ बनाता है।
लेखक | हरिशरण सिद्धान्तालंकार |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 633 |
Pdf साइज़ | 39.1 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |